Menu

मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

header photo

संतई-सेवकई-और सैफई

आजकल देश में नेताओं को संतई और सेवकई का दौरा पड़ा हुआ है। जिसे देखो संतगीरी या सेवकगीरी दिखा रहा है। चुनावी साल में जनता को अपनी सेवा और सादगी से लुभा रहा है। अभी तक संत धार्मिक काम करते थे। लेकिन जब से सन्त, आशाराम-गीरी करते हुये पकड़े जाने लगे हैं, तब से कुछ सन्त राजनीति में हाथ आजमाने लगे हैं। राजनीति में गज़ब का सन्त समागम हो रहा है। सत्संग झमाझम हो रहा है।

कोई लालबत्ती हटा रहा है। कोई कारों का काफिला घटा रहा है। बीएमडबल्यू छोड़ कर कोई वैगनआर चला रहा है। कोई सरकारी बंगले पर लात चला रहा है। कोई बिजली का बिल घटाने के लिए अपनी सरकार से लड़ रहा है। कोई फ्री दाना-पानी देने पे अड़ रहा है। ‘खास’,अब  ‘आम’ होने को बेताब है, और ‘आम’, अब ‘खास’ हुआ जा रहा है। टीवी- अखबार में बस ‘आम’ ही ‘आम’ नजर आ रहा है। ‘खास’ बेचारा शर्म से मुंह छुपा रहा है। इस आईपी (इंडियन प्रोविन्स) में वीआईपी की, इतनी दुर्गति कभी नहीं थी। कभी गुंडई टिकट का आधार थी, आजकल राजनीति में संतई की बहार है।

इधर ज्यों-ज्यों चुनाव नजदीक आ रहा है, कुछ लोग संतई से जीने और सेवकई करने पर उतारू हो रहे हैं। जिसे देखो जनता की फिक्र में अधमरा हुआ जा रहा है। कोई जनता के घर घर जाने की बात करता है, तो कोई दलित के घर खाने की बात करता है। कोई चावल फ्री दे रहा है कोई पानी। कोई बिजली फ्री दे रहा है, तो कोई सबकुछ फ्री देने के वादे कर रहा है। सब तरफ बस सत्संग हो रहा है।

एसे में बेचारे चोर और पुलिस अपनी किस्मत को रो रहे हैं। चोर, संतों की सदस्यता ले चुके हैं, जिसके कारण पुलिस बेचारी यूजलेस हो गयी है। पुलिसवाले खाली पड़े पड़े टायर होकर रिटायर हो रहे हैं। बड़े बड़े कार्पोरेट अपना रेट गिरा रहे हैं। अब तो गुंडो और पुलिस वालों को स’मौज’वादियों का ही सहारा रह गया है। क्योंकि आजकल स’मौज’वादियों को गीता का ज्ञान प्राप्त हो चुका है।

इसीलिए तो एक स’मौज’वादी उवाचते हैं कि जो पैदा हुआ है, वह मरेगा ही। चाहे वह महलों में रहे या मुजफ्फर नगर टेंट में। इसलिए हे पार्थ (मीडिया और विपक्षी)! तुम मुजफ्फर नगर दंगा पीड़ितों कि चिन्ता मत करो। वो क्या लेकर आए थे, क्या लेकर जाएँगे... एक दूसरे स’मौज’वादी अफसर उवाचते हैं कि ठण्ड से अगर कोई मरता तो साइबेरिया में कोई जीवित नहीं रहता। बेचारे साइबेरिया घूमने के चक्कर में मुजफ्फर नगर भी नहीं घूम पाये नहीं तो जान पते कि साइबेरिया में लोग टेंटों में नहीं रहते। वैसे जनता का दर्द तो स’मौज’वादी ही समझते हैं।

इस चिलचिलाती ठण्ड में, जनता को कड़कड़ाती धूप कि गर्मी का आनन्द देने के लिए ही सैफई में फिल्मी बालाओं के नृत्य का आयोजन कराते हैं। एसी ठण्ड में कम कपड़ों में नृत्य करती रूपसियों को देखकर भी जिसे ‘ठंडी में भी गर्मी का अहसास’ वाली फीलिङ्ग ना हो, एसी जनता को बारंबार धिक्कार है। धिक्कार है उन्हें जो सुंदरियों पर दस-पाँच करोड़ लूटाने कि बजाय मुजफ्फर नगर टेंट में सौ-दो सौ रूपल्ली के कम्बल बांटने की बात करते हैं। लानत है एसी टुच्चई सोच पर। करोड़ों को छोड़ सौ-दो सौ पर अटके हैं।

बेचारे स’मौज’वादी ही पुलिस और गुंडो की पीड़ा समझ रहे हैं। इसलिए इनको भरपूर काम दिलाने में लगे हैं। स’मौज’वादी राज में पुलिस वाले ओवर- टाइम कर रहे हैं। मर्द पुलिसवाले बेचारे रात में भी महिलाओं पर लाठी-लात-घूंसे चला रहे हैं। महिला पुलिस को कोई काम नहीं है। महिलाओं की इतनी फिक्र और किसी को क्या होगी। सैफई महोत्सव की सुरक्षा में बेचारों को खूब काम मिला है। इस समय जनता को संतई और सेवकई लुभा रही है, तो स’मौज’वादी लोगों को सैफई। जै हो संतई-सेवकई और सैफई की।

Go Back

Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

450;460;6b3b0d2a9b5fdc3dc08dcf3057128cb798e69dd9450;460;7bdba1a6e54914e7e1367fd58ca4511352dab279450;460;427a1b1844a446301fe570378039629456569db9450;460;7329d62233309fc3aa69876055d016685139605c450;460;1b829655f614f3477e3f1b31d4a0a0aeda9b60a7450;460;d0002352e5af17f6e01cfc5b63b0b085d8a9e723450;460;eca37ff7fb507eafa52fb286f59e7d6d6571f0d3450;460;0d7f35b92071fc21458352ab08d55de5746531f9450;460;f702a57987d2703f36c19337ab5d4f85ef669a6c450;460;946fecccc8f6992688f7ecf7f97ebcd21f308afc450;460;dc09453adaf94a231d63b53fb595663f60a40ea6450;460;69ba214dba0ee05d3bb3456eb511fab4d459f801450;460;f8dbb37cec00a202ae0f7f571f35ee212e845e39450;460;fe332a72b1b6977a1e793512705a1d337811f0c7450;460;cb4ea59cca920f73886f27e5f6175cf9099a8659450;460;60c0dbc42c3bec9a638f951c8b795ffc0751cdee450;460;9cbd98aa6de746078e88d5e1f5710e9869c4f0bc

आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

400;300;7b8b984761538dd807ae811b0c61e7c43c22a972400;300;133bb24e79b4b81eeb95f92bf6503e9b68480b88400;300;40d26eaafe9937571f047278318f3d3abc98cce2400;300;497979c34e6e587ab99385ca9cf6cc311a53cc6e400;300;02765181d08ca099f0a189308d9dd3245847f57b400;300;b158a94d9e8f801bff569c4a7a1d3b3780508c31400;300;321ade6d671a1748ed90a839b2c62a0d5ad08de6400;300;e167fe8aece699e7f9bb586dc0d0cd5a2ab84bd9400;300;52a31b38c18fc9c4867f72e99680cda0d3c90ba1400;300;f4a4682e1e6fd79a0a4bdc32e1d04159aee78dc9400;300;7a24b22749de7da3bb9e595a1e17db4b356a99cc400;300;bbefc5f3241c3f4c0d7a468c054be9bcc459e09d400;300;0fcac718c6f87a4300f9be0d65200aa3014f0598400;300;dde2b52176792910e721f57b8e591681b8dd101a400;300;648f666101a94dd4057f6b9c2cc541ed97332522400;300;b6bcafa52974df5162d990b0e6640717e0790a1e400;300;2d1ad46358ec851ac5c13263d45334f2c76923c0400;300;f7d05233306fc9ec810110bfd384a56e64403d8f400;300;3c1b21d93f57e01da4b4020cf0c75b0814dcbc6d400;300;08d655d00a587a537d54bb0a9e2098d214f26bec400;300;611444ac8359695252891aff0a15880f30674cdc400;300;e1f4d813d5b5b2b122c6c08783ca4b8b4a49a1e4400;300;aa17d6c24a648a9e67eb529ec2d6ab271861495b400;300;6b9380849fddc342a3b6be1fc75c7ea87e70ea9f400;300;9180d9868e8d7a988e597dcbea11eec0abb2732c400;300;24c4d8558cd94d03734545f87d500c512f329073400;300;ba0700cddc4b8a14d184453c7732b73120a342c5400;300;f5c091ea51a300c0594499562b18105e6b737f54400;300;0db3fec3b149a152235839f92ef26bcfdbb196b5400;300;dc90fda853774a1078bdf9b9cc5acb3002b00b19400;300;a5615f32ff9790f710137288b2ecfa58bb81b24d400;300;76eff75110dd63ce2d071018413764ac842f3c93

हमसे संपर्क करें

visitor

891035

चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

400;300;6600ea27875c26a4e5a17b3943eefb92cabfdfc2400;300;acc334b58ce5ddbe27892e1ea5a56e2e1cf3fd7b400;300;639c67cfe256021f3b8ed1f1ce292980cd5c4dfb400;300;1c995df2006941885bfadf3498bb6672e5c16bbf400;300;f79fd0037dbf643e9418eb6109922fe322768647400;300;d94f122e139211ea9777f323929d9154ad48c8b1400;300;4020022abb2db86100d4eeadf90049249a81a2c0400;300;f9da0526e6526f55f6322b887a05734d74b18e66400;300;9af69a9bc5663ccf5665c289fc1f52ae6c1881f7400;300;e951b2db2cbcafdda64998d2d48d677073c32c28400;300;903118351f39b8f9b420f4e9efdba1cf211f99cf400;300;5c086d13c923ec8206b0950f70ab117fd631768d400;300;71dca355906561389c796eae4e8dd109c6c5df29400;300;b0db18a4f224095594a4d66be34aeaadfca9afb3400;300;dfec8cfba79fdc98dc30515e00493e623ab5ae6e400;300;31f9ea6b78bdf1642617fe95864526994533bbd2400;300;55289cdf9d7779f36c0e87492c4e0747c66f83f0400;300;d2e4b73d6d65367f0b0c76ca40b4bb7d2134c567

अन्यत्र

आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...