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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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यत्र उलूकस्य पूज्यन्ते..... ....

बाबा शेक्सपियर ने कहा था कि हर कुत्ते का एक दिन आता है। तो आजकल कुत्तों के दिन चल रहे हैं। हालांकि उन्होने यह नहीं बताया था कि रात किसकी है या रात किसकी आएगी? तो मै आपको बताता हूँ कि आजकल उल्लुओं कि रात के साथ साथ दिन भी चल रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कुत्तों की वैलू कम हो गयी है।

उल्लू हमारे देश का राष्ट्रीय पक्षी घोषित होना चाहिए। जिस देश के हर साख पे उल्लू बैठा हो, उस देश का राष्ट्रीय पक्षी कोई और हो, ये ठीक नहीं। उल्लू का महत्व पौराणिक काल से वर्तमान फेसबुक और ट्विटर काल तक अनवरत जारी है। देवी लक्ष्मी कि सवारी उल्लू था, तो आज हर आदमी उल्लू कि सवारी करना चाहता है, यानी लक्ष्मी को पाना चाहता है।

हिन्दी साहित्य में भी उल्लू का बहुत महत्व है। बहुत से मुहावरे तो उल्लू पर ही बने हैं। ‘उल्लू बनाना’, ‘अपना उल्लू सीधा करना’, ‘उल्लू का पट्ठा’, ‘काठ का उल्लू’, ‘उल्लू बोलना’ और ‘उल्लू कि तरह ताकना’ आदि मुहावरे यह बताते हैं कि उल्लू हमारे रग रग में कितना रचा बसा है। ये सारे मुहावरे आदमी से उल्लू के गोत्रात्मक संबंध को प्रदर्शित करते हैं। क्योंकि उल्लू का पट्ठा या काठ का उल्लू आदमी ही होता है, उल्लू नहीं होते।

फेसबुकिया पुराण के अनुसार, एक बार उल्लू देव माता लक्ष्मी से नाराज होकर बोले- माता आपकी सब पूजा करते हैं दिवाली पर, लेकिन कभी कोई मेरी पूजा नहीं करता। माता लक्ष्मी, उलूक जी की ये बात सुनकर बोलीं, जिस दिन मेरी पूजा होगी (दिवाली), उसके ठीक ग्यारह दिन पहले (करवा चौथ) तुम्हारी पूजा सभी सुहागिने करेंगी। तब से मेरे जैसे उल्लुओं को भी साल में एक बार पूजा जाने लगा है।

कुछ अज्ञानी विद्वान यह भी कहते हैं की साहित्य समाज का दर्पण होता है। इसलिए साहित्य की ही तरह समाज में भी उल्लुओं का बहुत महत्व है। क्योंकि उल्लुओं में रात में देखने की क्षमता होती है, इसलिए जो लोग उल्लू के पट्ठे होते हैं या काठ के उल्लू होते हैं, वे जनता का नेतृत्व करते हैं। तो एसे उल्लू के पट्ठे या काठ के उल्लू, जनता को उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं।

उल्लू का महत्व इसलिए भी अधिक है, क्योकि वह लक्ष्मी को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाता है, और अंधेरे में देखने के कारण वह काले धन को भी यहाँ से वहाँ पहुंचा सकता है। इसलिए अन्य आदमियों और जानवरों से उल्लू श्रेष्ठ और पूज्य है।

हमारे देश में आजकल उल्लुओं का बोलबाला है। हर किस्म और वेराइटी के उल्लू हमारे यहाँ पाये जाते हैं। छोटे उल्लू-बड़े उल्लू, लेकिन हर साख पे उल्लू। बड़े उल्लू पाँच साल सोने के बाद चुनाव में जागते हैं, और जनता को अपनी जमात में शामिल करने में (उल्लू बनाने में) लग जाते हैं। छोटे उल्लू चुनाव दर चुनाव उल्लू बनते रहते हैं, और उनकी जिंदगी में पाँच साल उल्लू बोलता है, चुनावों को छोड़कर। सालों से उल्लुओं के दिन और रात चल रहे हैं, मगर बाबा शेक्सपियर ने यह नहीं बताया था कि जनता का दिन का आएगा?

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Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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