Menu

मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

header photo

देशहित-जनहित में निजहित !!

देशहित की बीमारी जिसे लग जाए, उसे नेता बनाकर ही छोड़ती है। अगर कोढ़ में खाज की तरह, देशहित के साथ साथ जनहित का रोग भी जिसे लग जाए, वह तो मंत्री या प्रधान मंत्री तक बन सकता है। इतिहास गवाह है की हर नेता की उत्पत्ति इन्हीं दो कारणों से हुई है। देशहित या जनहित। अब हमारा देश ठहरा अनपढ़-गंवार। देश की जनता भी ठहरी निरा बुद्धू। ये अपना हित अनहित कहाँ समझते हैं। जो इनके हित अनहित को समझता है, वही नेतृत्व करता है और नेता बनता है।

अब बेचारे देश को क्या पता कि कोयले का ब्लाक किसे देना उसके (देश के) हित में है? जनता को क्या पता कि कोल ब्लाक किस चिड़िया का नाम है? इसीलिए नेताओं ने इसकी बंदर-बांट देशहित और जनहित में की। अब मूर्ख जनता अपना हित ना समझे तो इसमें नेताओं का क्या दोष?

जनहित और देशहित में नेताओं को क्या क्या नहीं करना पड़ता। कभी पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाने पड़ते हैं, कभी खाने कि चीजों के। कभी किराया बढ़ाना पड़ता है, कभी टैक्स और सरचार्ज लगाना पड़ता है। कभी सरकार गिरानी पड़ती है, तो कभी गठबंधन करके सरकार चलानी पड़ती है। कभी किसी को घोटालों का जिम्मेदार ठहराकर जेल भेजना पड़ता है, तो कभी किसी को घोटालों से बचाने के लिए सीबीआई को बुलाकर रिपोर्ट बदलवानी पडती है। इस देशहित और जनहित में कलेजे पर पत्थर रखकर और ना जाने क्या-क्या करना पड़ता है।

चुनाव आने पर पैदलयात्रा करते हैं, तो चुनाव बितने पर रोड यात्राएं छोड़कर हवाई यात्राएं करना पड़ता है। बेचारे मन-मसोसकर रोड के गड्ढों में हिचकोलो का मजा जनहित में त्याग देते हैं। हवाई यात्राओं में भी सवारियों को जगह देने के लिए, हेलीकाप्टर में जाते हैं। और जनहित मे हेलीकाप्टर भी खरीदना पड़ता है। लेकिन इसमें भी वो देशहित (कमीशन) नहीं छोड़ते। जो भी पैसे विदेशियों को हेलीकाप्टर खरीदने में देते हैं, उसका 20-30 परसेंट वापस (कमीशन) ले लेते हैं। जिससे कि देश का पैसा देश में ही रह जाए। ये तो पब्लिक और सीएजी है जिसे देशहित और जनहित की समझ नहीं है, इसलिए चिल्लाती है।

अब जनहित सीखना हो तो उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश सिंह से सीखिये जिनके जनहित के कार्य पर लोग प्रश्न लगा रहे हैं। उन्होनें देशहित में नेताओं के लूट-डकैती-बलात्कार तक के मामले उठाने का फैसला किया है। यहाँ तक कि कई बम ब्लास्ट के आरोपियों के मामले भी जनहित में वापस कर लेने का फैसला किया है। इससे नेता बेदाग होंगे और जनता को स्वच्छ छवि का नेता मिलेगा। वैसे भी कोर्ट कचहरी में जनता का लाखों रुपया बर्बाद होता है। नेताओं मंत्रियों के मामले देखने के लिए सरकारी धन का दुरुपयोग होता है। जो की कतई देश हित में नहीं है। वैसे भी नेता जनता की सेवा (?) करने के लिए होता है, ना की कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने के लिए। इसलिए देशहित और जनहित में सारे मामले वापस लेना जरूरी था।

वैसे आजकल क्रिकेटरों को भी जनहित में फिक्सिंग का शौक चर्राया है। श्रीसंत ने रुमाल खोंसकर, उसे सलमान खान और रणवीर कपूर के तौलिये से भी ज्यादा फेमस कर दिया। जनहित में बेचारे जनता (बुकी) के इशारे पर खेलते रहे और देशहित (धन कमाना) दिखाते रहे। बाद में नादान पुलिस ने उन्हें जेल दिखा दिया। क्या पता कोई अखिलेश सिंह जैसा जन चिंतक, देशहित और जनहित में उनका भी केस वापस करवा दे।

Go Back

Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

450;460;d0002352e5af17f6e01cfc5b63b0b085d8a9e723450;460;eca37ff7fb507eafa52fb286f59e7d6d6571f0d3450;460;946fecccc8f6992688f7ecf7f97ebcd21f308afc450;460;1b829655f614f3477e3f1b31d4a0a0aeda9b60a7450;460;fe332a72b1b6977a1e793512705a1d337811f0c7450;460;9cbd98aa6de746078e88d5e1f5710e9869c4f0bc450;460;0d7f35b92071fc21458352ab08d55de5746531f9450;460;7bdba1a6e54914e7e1367fd58ca4511352dab279450;460;427a1b1844a446301fe570378039629456569db9450;460;cb4ea59cca920f73886f27e5f6175cf9099a8659450;460;f702a57987d2703f36c19337ab5d4f85ef669a6c450;460;dc09453adaf94a231d63b53fb595663f60a40ea6450;460;60c0dbc42c3bec9a638f951c8b795ffc0751cdee450;460;f8dbb37cec00a202ae0f7f571f35ee212e845e39450;460;69ba214dba0ee05d3bb3456eb511fab4d459f801450;460;7329d62233309fc3aa69876055d016685139605c450;460;6b3b0d2a9b5fdc3dc08dcf3057128cb798e69dd9

आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

400;300;aa17d6c24a648a9e67eb529ec2d6ab271861495b400;300;40d26eaafe9937571f047278318f3d3abc98cce2400;300;bbefc5f3241c3f4c0d7a468c054be9bcc459e09d400;300;0db3fec3b149a152235839f92ef26bcfdbb196b5400;300;7a24b22749de7da3bb9e595a1e17db4b356a99cc400;300;611444ac8359695252891aff0a15880f30674cdc400;300;0fcac718c6f87a4300f9be0d65200aa3014f0598400;300;ba0700cddc4b8a14d184453c7732b73120a342c5400;300;e167fe8aece699e7f9bb586dc0d0cd5a2ab84bd9400;300;6b9380849fddc342a3b6be1fc75c7ea87e70ea9f400;300;648f666101a94dd4057f6b9c2cc541ed97332522400;300;24c4d8558cd94d03734545f87d500c512f329073400;300;7b8b984761538dd807ae811b0c61e7c43c22a972400;300;dde2b52176792910e721f57b8e591681b8dd101a400;300;f4a4682e1e6fd79a0a4bdc32e1d04159aee78dc9400;300;3c1b21d93f57e01da4b4020cf0c75b0814dcbc6d400;300;e1f4d813d5b5b2b122c6c08783ca4b8b4a49a1e4400;300;f5c091ea51a300c0594499562b18105e6b737f54400;300;52a31b38c18fc9c4867f72e99680cda0d3c90ba1400;300;dc90fda853774a1078bdf9b9cc5acb3002b00b19400;300;76eff75110dd63ce2d071018413764ac842f3c93400;300;497979c34e6e587ab99385ca9cf6cc311a53cc6e400;300;9180d9868e8d7a988e597dcbea11eec0abb2732c400;300;2d1ad46358ec851ac5c13263d45334f2c76923c0400;300;a5615f32ff9790f710137288b2ecfa58bb81b24d400;300;08d655d00a587a537d54bb0a9e2098d214f26bec400;300;02765181d08ca099f0a189308d9dd3245847f57b400;300;b6bcafa52974df5162d990b0e6640717e0790a1e400;300;133bb24e79b4b81eeb95f92bf6503e9b68480b88400;300;b158a94d9e8f801bff569c4a7a1d3b3780508c31400;300;321ade6d671a1748ed90a839b2c62a0d5ad08de6400;300;f7d05233306fc9ec810110bfd384a56e64403d8f

हमसे संपर्क करें

visitor

896292

चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

400;300;6600ea27875c26a4e5a17b3943eefb92cabfdfc2400;300;acc334b58ce5ddbe27892e1ea5a56e2e1cf3fd7b400;300;639c67cfe256021f3b8ed1f1ce292980cd5c4dfb400;300;1c995df2006941885bfadf3498bb6672e5c16bbf400;300;f79fd0037dbf643e9418eb6109922fe322768647400;300;d94f122e139211ea9777f323929d9154ad48c8b1400;300;4020022abb2db86100d4eeadf90049249a81a2c0400;300;f9da0526e6526f55f6322b887a05734d74b18e66400;300;9af69a9bc5663ccf5665c289fc1f52ae6c1881f7400;300;e951b2db2cbcafdda64998d2d48d677073c32c28400;300;903118351f39b8f9b420f4e9efdba1cf211f99cf400;300;5c086d13c923ec8206b0950f70ab117fd631768d400;300;71dca355906561389c796eae4e8dd109c6c5df29400;300;b0db18a4f224095594a4d66be34aeaadfca9afb3400;300;dfec8cfba79fdc98dc30515e00493e623ab5ae6e400;300;31f9ea6b78bdf1642617fe95864526994533bbd2400;300;55289cdf9d7779f36c0e87492c4e0747c66f83f0400;300;d2e4b73d6d65367f0b0c76ca40b4bb7d2134c567

अन्यत्र

आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...