देशहित की बीमारी जिसे लग जाए, उसे नेता बनाकर ही छोड़ती है। अगर कोढ़ में खाज की तरह, देशहित के साथ साथ जनहित का रोग भी जिसे लग जाए, वह तो मंत्री या प्रधान मंत्री तक बन सकता है। इतिहास गवाह है की हर नेता की उत्पत्ति इन्हीं दो कारणों से हुई है। देशहित या जनहित। अब हमारा देश ठहरा अनपढ़-गंवार। देश की जनता भी ठहरी निरा बुद्धू। ये अपना हित अनहित कहाँ समझते हैं। जो इनके हित अनहित को समझता है, वही नेतृत्व करता है और नेता बनता है।
अब बेचारे देश को क्या पता कि कोयले का ब्लाक किसे देना उसके (देश के) हित में है? जनता को क्या पता कि कोल ब्लाक किस चिड़िया का नाम है? इसीलिए नेताओं ने इसकी बंदर-बांट देशहित और जनहित में की। अब मूर्ख जनता अपना हित ना समझे तो इसमें नेताओं का क्या दोष?
जनहित और देशहित में नेताओं को क्या क्या नहीं करना पड़ता। कभी पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाने पड़ते हैं, कभी खाने कि चीजों के। कभी किराया बढ़ाना पड़ता है, कभी टैक्स और सरचार्ज लगाना पड़ता है। कभी सरकार गिरानी पड़ती है, तो कभी गठबंधन करके सरकार चलानी पड़ती है। कभी किसी को घोटालों का जिम्मेदार ठहराकर जेल भेजना पड़ता है, तो कभी किसी को घोटालों से बचाने के लिए सीबीआई को बुलाकर रिपोर्ट बदलवानी पडती है। इस देशहित और जनहित में कलेजे पर पत्थर रखकर और ना जाने क्या-क्या करना पड़ता है।
चुनाव आने पर पैदलयात्रा करते हैं, तो चुनाव बितने पर रोड यात्राएं छोड़कर हवाई यात्राएं करना पड़ता है। बेचारे मन-मसोसकर रोड के गड्ढों में हिचकोलो का मजा जनहित में त्याग देते हैं। हवाई यात्राओं में भी सवारियों को जगह देने के लिए, हेलीकाप्टर में जाते हैं। और जनहित मे हेलीकाप्टर भी खरीदना पड़ता है। लेकिन इसमें भी वो देशहित (कमीशन) नहीं छोड़ते। जो भी पैसे विदेशियों को हेलीकाप्टर खरीदने में देते हैं, उसका 20-30 परसेंट वापस (कमीशन) ले लेते हैं। जिससे कि देश का पैसा देश में ही रह जाए। ये तो पब्लिक और सीएजी है जिसे देशहित और जनहित की समझ नहीं है, इसलिए चिल्लाती है।
अब जनहित सीखना हो तो उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश सिंह से सीखिये जिनके जनहित के कार्य पर लोग प्रश्न लगा रहे हैं। उन्होनें देशहित में नेताओं के लूट-डकैती-बलात्कार तक के मामले उठाने का फैसला किया है। यहाँ तक कि कई बम ब्लास्ट के आरोपियों के मामले भी जनहित में वापस कर लेने का फैसला किया है। इससे नेता बेदाग होंगे और जनता को स्वच्छ छवि का नेता मिलेगा। वैसे भी कोर्ट कचहरी में जनता का लाखों रुपया बर्बाद होता है। नेताओं मंत्रियों के मामले देखने के लिए सरकारी धन का दुरुपयोग होता है। जो की कतई देश हित में नहीं है। वैसे भी नेता जनता की सेवा (?) करने के लिए होता है, ना की कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने के लिए। इसलिए देशहित और जनहित में सारे मामले वापस लेना जरूरी था।
वैसे आजकल क्रिकेटरों को भी जनहित में फिक्सिंग का शौक चर्राया है। श्रीसंत ने रुमाल खोंसकर, उसे सलमान खान और रणवीर कपूर के तौलिये से भी ज्यादा फेमस कर दिया। जनहित में बेचारे जनता (बुकी) के इशारे पर खेलते रहे और देशहित (धन कमाना) दिखाते रहे। बाद में नादान पुलिस ने उन्हें जेल दिखा दिया। क्या पता कोई अखिलेश सिंह जैसा जन चिंतक, देशहित और जनहित में उनका भी केस वापस करवा दे।