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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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तारीख पे तारीख..

ज्यों ज्यों नजदीक आ रहा है चुनाव। जनता का बढ़ रहा है भाव। पाँच साल तक नेता जी दिखा रहे थे ताव। अब जनता के मुँह में भी जबान आ गयी, घोषित होते ही चुनाव। चुनाव की सरगर्मी में, टीवी चैनल –अख़बार कर रहे हैं कांव-कांव। जनता की राय जानने, दौड़ रहे हैं गाँव-गाँव। जगह जगह चुनाव सभाओं के मंच सज रहे हैं। एक से एक फिल्मी गाने, देशभक्ति की पैरोडी में बज रहे हैं। एसे ही चुनावी चकल्लस में चैनल वाले, चुनाव क्षेत्रों में, नेता जनता का आमना-सामना करा रहे हैं। आरोप –प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं।

एंकर ने मुखारबिन्द खोला- “नेता जी जनता जानना चाहती है की भ्रष्टाचार कब ख़त्म होगा? लोकपाल बिल कब पास होगा?” नेता- “देखिए हमारी पार्टी भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ है। लोकपाल बिल अगले सत्र तक पास हो जाएगा”।  एंकर- “जनता जानना चाहती है कि महँगाई कब कम होगी? आलू-प्याज-टमाटर के दाम कब कम होंगे?” नेता- “बस एक दो हफ्तों में सभी चीजों के दाम कम हो जायेंगे”। एंकर- “लेकिन आप पिछले साल से यही कह रहे हैं। दो हफ्ते पहले भी यही कहा था। लेकिन दाम अब तक तो नहीं घटा”। नेता- “देखिए हम कह रहे हैं। हमें एक तारीख और दे दीजिये, सारी महँगाई कम हो जाएगी”।

इतना सुनते ही जनता में से एक ढाई किलो के हाथ वाले सन्नी देवोल के चेले को गुस्सा आ गया। और वो चीख पड़ा- “मी लार्ड! तारीख देने से पहले मैं कुछ अर्ज करना चाहता हूँ”। नेता जी बोले- “इजाजत है”। उसने शुरू किया- “मी लार्ड! पहली तारीख में (पिछले साल) ये कहा गया कि पब्लिक ज्यादा खाना खाने लगी है, इसलिए चीजों के दाम बढ़े हैं। दूसरी तारीख में ये कहा गया कि खराब मौसम कि वजह से फसल अच्छी नहीं हुई। जबकि इस दौरान विदेशों को खूब प्याज निर्यात हुई। लेकिन आपने खराब मौसम के नाम पर फिर तारीख ले ली। और आज फिर से तारीख माँग रहे हैं।

उस तारीख से पहले जनता का खून चूस लिया जाएगा और केस बनेगा कुपोषण का। आप फिर से तारीख मांगेंगे। और उस तारीख से पहले जनता भूंख से मर जाएगी। और इस तरह ना कोई सस्ती प्याज माँगने वाला रहेगा, ना ही खाने वाला। रह जाएगी तो सिर्फ तारीख। और यही होता रहा है मी लार्ड! तारीख पर तारीख। तारीख पर तारीख। तारीख पर तारीख मिलती रही है, लेकिन सस्ता आलू-प्याज नहीं मिला। मिली है तो सिर्फ तारीख।

सत्ता के दलालों ने तारीख को महँगाई के खिलाफ एक हथियार कि तरह इस्तेमाल किया है मी लार्ड! दो तारीखों के बीच ये लोग कालाबाजारी का धंधा करते हैं। जहाँ जमाखोरी की जाती है, कीमते बढ़ाई जाती हैं। और रह जाती है सिर्फ तारीख। लोग आलू-प्याज के लिए अपनी जमीन जायदाद बेंचकर सब्जी मंडी जाते हैं और ले आते हैं सिर्फ तारीख। औरतों ने अपने गहने जेवर यहाँ तक कि मंगलसूत्र भी बेंचे हैं आलू-प्याज के लिए। और उन्हें भी मिली है तो सिर्फ तारीख।

महीनों-सालों चक्कर काटते हुये सब्जी मंडी के, कई खरीदार खुद बन जाते हैं तारीख। और उन्हें भी मिलती है सिर्फ तारीख। ये मुद्दा पूरे हिंदुस्तान की जनता का है। आज उन सबकी नजरें आप पर गड़ी हैं आप पर। कि आप उन्हें क्या देते हैं। महँगाई से निजात,  या तारीख। अगर आप उन्हें महँगाई से निजात नहीं दे सकते, तो बंद कीजिये ये तमाशा। उखाड़ फेंकिए इन मंचों को। फाड़ दीजिये, जला दीजिये इन डेरे तंबुओं को। ताकि महँगाई के इस चक्कर में और लोग तबाह ना हों, बर्बाद ना हों”

ढाई किलो के हाथ वाले का ये भाषण सुनकर नेताजी ने तुरंत एंकर से कहा, आज की सभा यही समाप्त करते हैं, कुछ और मुद्दों के साथ मिलेंगे अगली तारीख पर। और जनता को एक बार फिर मिल गयी तारीख.......... 

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Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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