जांच एक एसी प्रक्रिया है, जिससे दोषी पर कभी आंच नहीं आती। अफसर-नेता, घोटाले का करें नंगा नांच। जब जनता चिल्लाये, तो थमा देते हैं, जांच। और किसी दोषी पर कभी नहीं आती आंच। ये है पब्लिक उवाच।
तो हमारे नेता जी को एक चिरकुट कैमरे ने किसी से एक करोड़ रुपये लेते कैद कर लिया। फिर क्या था, सब तरफ हल्ला मच गया। नेताजी रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े गये। विपक्षी नेता ने इसे चुनाव से जोड़ दिया। बोले, “हमारा देश एक महान लोकतन्त्र है। हमारे यहाँ पत्रकारिता का चौथा स्तम्भ मौजूद है। यह खोजी पत्रकारिता है, जिसने फलां नेता को बेनकाब कर दिया। मैं तो पहले से ही कह रहा था, की वह नेता देश को लूट रहा है, मोटा माल खा रहा है। अब मेरी बात सच साबित हुई। हमें जिताइए, एसे सभी देश लूटने वालों को हम जेल भेजेंगे”।
चारों तरफ तालियों की गड़गड़ाहट से विपक्षी नेता जी का जोश बढ़ गया। सभी टीवी चैनल, संसद बन गये। नेताजी की घूसख़ोरी पर चर्चा से, चैनलों का खर्चा अच्छे से निकल रहा था। आखिर में, घूस लेने वाले नेताजी को मीडिया के सामने आकर, अपनी सफाई देनी पड़ी। मैं तो यह पार्टी के लिए चंदा ले रहा था। बिना पार्टी के राजनीति, और बिना राजनीति के सरकार कैसे बनेगी और चलेगी। तो यह पैसा मैं देश के लिए ले रहा था।
अंत में, नेताजी ने अपना आखिरी दांव चला। बोले,-मैं किसी भी जांच के लिए तैयार हूँ। साँच को आंच कैसी? लेकिन जांच दोनों की होनी चाहिए। मीडिया ने पुंछा, दोनों की मतलब, घूस लेने और देने वाले, दोनों की? नेता जी चिल्लाये, नहीं। घूस लेने वाले और उसे दिखाने वाले, दोनों की। मीडिया ने पुंछा, लेकिन जिसने दिया उसका क्या? नेताजी बोले, वह उसका ब्यक्तिगत मामला है। हमें किसी के ब्यक्तिगत मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। मैं अभी जांच समिति गठित करता हूँ, और दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा।
जांच शुरू हुई। जिसने पैसा लेते हुये दिखाया था। सबसे पहले, जांच कमेटी ने उसे बुलाया। पुंछतांछ शुरू हुई। आपने किसके इशारे पर यह सब दिखाया? इसे दिखाने पर आपकी टीआरपी कितनी बढ़ी? आपने इसे दिखाकर, क्या दो करोड़ का विज्ञापन नहीं बटोरा? आपने यह दिखाकर देश की छवि, दुनिया के सामने खराब नहीं की? यह तो देशद्रोह है। कौन कौन इस साजिश में शामिल हैं? आपने वह जासूसी कैमरा कहाँ से खरीदा? उसका पक्का बिल है या नहीं? एसे कैमरे तो विदेश से ही मिलते हैं, क्या इसमें कोई लश्करे-तोयबा या आई एस आई जैसी एजेंसी तो नहीं शामिल है? बेचारा पत्रकार......
जब भी मीडिया इस मुद्दे को उठाती कि, घूसख़ोरी काण्ड में अमुक नेता को बचाया जा रहा है, तुरंत ही सरकार कि ओर से बयान आता, जांच अभी जारी है। एक बार जांच हो जाये, दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। इस तरह चुनाव आ गया। विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाया। सरकार ने इसे मामला कोर्ट में और जांच जारी है बताया। लेकिन पब्लिक ने विपक्ष को सरकार में लाया।
जनता को लगा अब दोषी को सजा हो जाएगी। लेकिन तभी सरकार का एक दूसरा घोटाला मीडिया ने दिखा दिया। अब जो विपक्ष में था, उसकी बारी थी चिल्लाने की। मीडिया में पानी पी पी कर सरकार को महाभ्रष्ट, घूसखोर बताने लगी। जनता तो किंकर्तब्य विमूढ़ हो गयी। अब किसे लाये। सरकार ने जनता को संतुष्ट करने के लिए एक भारी भरकम जांच समिति का गठन किया। जांच शुरू हुई। मिडियावालों को बुलाया गया। फिर वही जांच शुरू हुई। क्या आप सरकार को ब्लैकमेल करने कि कोशिश कर रहे थे यह घोटाला दिखाकर? किस पार्टी या नेता के इशारे पर यह सब दिखाया ? आदि आदि।
इस तरह दूसरे तीसरे चौथे ... घोटाले आते रहे और लोग पहले के घोटालों को भूलते रहे। कभी सरकार विपक्ष में, कभी विपक्ष सरकार में आता। जाँच को सरका-सरका कर चलाता। जब भी किसी को पुराने घोटाले याद आते, सरकार उन्हें जाँच की याद दिलाती कि जाँच अभी जारी है, एक बार जाँच कि रिपोर्ट आ जाये, दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। जनता जिस तरह दूध और पानी के लिए तरसती है, उसी तरह जाँच रिपोर्ट के लिए भी तरसती है। कभी पक्ष के, तो कभी विपक्ष के घोटाले की बारी है। ये जनता की लाचारी है। क्योंकि मामला सरकारी है, जाँच अभी भी जारी है.......