इस कोरोना ने, भारतीय बिजनेस-मैनो और सत्ताधारी नेताओं के लिए, आपदा में अवसर बना दिया है। व्यापारी हों या सत्ताधारी, सबको आपदा में अवसर दे रही है कोरोना महामारी। लोगों की नौकरियां खाकर, काम-धंधा छुडवाकर, कर्मचारियों की छटनी करवाकर, वर्क फ्रॉम होम के नाम पर काम के घंटे बढ़वाकर, दफ्तरों को मेंटेन करने के खर्चे बचाकर, बचे कर्मचारियों को गुलाम की तरह काम करवाकर, बड़े-बड़े व्यापारी, औद्योगिक घराने, दिन दूनी रात चौगुनी अपनी तोंद बढ़ा रहे हैं। जब जनता लाकडाऊन में घर में दुबककर, कामधंधे और पैसे पैसे को मोहताज हो रही थी, उसी समय कंपनियों की बैलेंसशीट वाह-ताज! वाह-ताज! कर रही थी। ये कोरोना मैया का ही कमाल है कि कंपनियां बिना ज्यादा माल बेचे ही, सामानों के दाम बढ़ाकर, और कर्मचारियों की तनख्वाह घटाकर माल कुटाई कर रही हैं.
कोरोना के आने से फायदा उठाने वाले अब कोरोना के जाने से भी कमाने की फिराक में हैं। वैसे भी कोरोना है तो मुमकिन है। अर्थव्यवस्था भले ही धड़ाम हो गई है, लेकिन शेअर मार्केट दिन-प्रतिदिन छलांगे लगा रहा है। हम लोग कोरोना का चाहे जितना रोना रो लें, लेकिन इसने सबको सिर्फ दिया ही दिया है, लिया कुछ नहीं है। अमीर हो या गरीब, सरकार हो या असरकार, निजाम हो या अवाम, सबको कुछ ना कुछ दिया है। अमीरों को कमाने का अवसर दिया है तो गरीबों को अपनी जमा-पूंजी तक गंवाने का अवसर भी दिया है। सरकार को जनता पर रोज-रोज नए-नए टैक्स लगाकर माल कूटने का अवसर दिया है, तो जनता को टैक्स दे देकर देशभक्ति दिखाने का मौका भी दिया है। कंपनियों को कमाई बढ़ाकर, दुनिया में नाम रोशन करने का मौका दिया है तो, नौकरी खोकर लोगों को पकौड़े तलकर आत्मनिर्भर बनने का मौका दिया है। कोरोना ने सरकार को सरकारी संपत्तियों को बेंचने का सुनहरा अवसर दिया है।
वैसे कोरोना एक जादुई और चमत्कारी बीमारी है। चमत्कारी इसलिए क्योंकि यह आदमी की औकात देखकर अपना असर दिखाती है। ट्रम्प बाबा अमेरिका से आकर लाखों लोगों को जमा करें तो यह बीमारी नहीं फैलती, मध्यप्रदेश में विधायकों को होटल के कमरे में ठूंसकर सरकार पलटें तब भी यह बीमारी नहीं फैलती है, लेकिन मजदूर अगर कामधंधा छूटने पर शहर से अपने गांव को जाने लगे तो कोरोना फैलना शुरू हो जाता है। कोरोना की जादुई बीमारी, लाखों लोगों से भरी चुनावी रैलियों में नही फैलती, लेकिन सौ-दो सौ सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों में, सरकार से सवाल करने वाली दो-चार सौ सांसदों वाली संसद में आग की तरह फैलती है। यह चमत्कारी ही नहीं, सरकारी बीमारी भी लगती है, जो सरकार के हिसाब से फैलती है और उसी के हिसाब से ठीक हो जाती है।
सरकार और कंपनियों की कमाई करने के लिए कोरोना किसी कल्पवृक्ष से कम नहीं है। कोरोना काल में राज्य सरकारों ने दारू पर 20-30% अतिरिक्त टैक्स बढ़ा दिया। पेट्रोल-डीजल पर भी टैक्स बढ़ा दिया। मास्क न पहनने पर 500रु का जुर्माना लगाकर अलग उगाही होने लगी। कंपनियों ने 20-30रुपये के सेनेटाइजर 50-100रुपये तक बेंचा। 10-10 रुपये के मास्क 30-40 रुपये में बेंचा। लेकिन असली कमाई तो कोरोना की बिदाई से होनी है, जिसके लिए कंपनियाँ जान-तोड़ मेहनत कर रही है। सबसे पहले वैक्सीन बनाने की होड लगी है। एक कंपनी, दूसरी कंपनी की वैक्सीन को पानी कम बता रही है, और इस तरह खुद ही एक-दूसरे की पोल खोल रही हैं। हालांकि उनको जल्दी ही समझ आ गया कि कहीं बिल्लियों की इस लड़ाई में बंदर का फायदा ना हो जाए, यानि इस बंदरबांट के चक्कर में, जनता वैक्सीन से दूर ना हो जाए, इसलिए आपस में समझौता भी जल्दी कर लिए।
कोरोना भी अपने नए नए रंग में आ रहा है। वर्जन 2 भी मार्केट में आ चुका है। कोरोना ने लोगों के जीवन स्तर को इतना उठाया है कि अब लोग जमीन पर रेंगने वाली, धुआ छोडने वाली सरकारी रेलगाड़ियों के बजाय हवा में उड़ने वाले विमानों पर आ-जा रहे हैं। वैसे भी सरकारी निठल्ले कर्मचारियों से तंग आ चुकी जनता, अच्छे से जेब ढीली करके, प्राइवेट ट्रेनों और फ्लाइटों का आनंद उठा रही है। 10 रुपये में चार्ज करके महीने भर चलने वाले सस्ते बेकार बीएसएनएल को छोड़, जियो के न्यूनतम 250 रुपये महीने वाले प्लान का मजा ले रही है। कमाने वाले कम-कोरोना-कम, कर रहे हैं तो लुटने वाली जनता भी गो-कोरोना-गो करके मजे ले रही है। लूटने और लुटने वालों के इन सभी आनंदों में कमी नहीं आनी चाहिए, मौज-मस्ती में कोई खलल नहीं पड़ना चाहिए। इसलिए हे कोरोना मैया, अपने भक्तों का बस इतना ख्याल रखना, कि जब तक, जमके कमाई नहीं, तब तक कोई ढिलाई नहीं।