मुंसिफ भी हो तुम्ही, और गुनहगार भी तुम्हीं।
तुम ही हो कार्पोरेट, और सरकार भी तुम्हीं।
जनता को कौन राह, दिखाएगा आजकल,…
मुंसिफ भी हो तुम्ही, और गुनहगार भी तुम्हीं।
तुम ही हो कार्पोरेट, और सरकार भी तुम्हीं।
जनता को कौन राह, दिखाएगा आजकल,…
ये दिल तो बेकरार, बहुत देर तक रहा।
उनका भी इंतजार, बहुत देर तक रहा।
हम बेखुदी में ही रहे, जब वो चले गए,
ख़ुद पर न अख़्तियार, बहुत देर तक रहा।…
हम अपने प्यार का, उनको हिसाब क्या देंगे ?
सवाल ही जो गलत है, जवाब क्या देंगे ?
पिलाते हैं जो खुशी, नाप के पैमानों से,…
सारे मसले, बारी बारी लिया करो।
बस चुनावकी ही, तैयारी किया करो।
देशभक्ति कब तक बस, चमचागीरी से,
नेताओं से कुछ, गद्दारी किया करो।…
जनता की आह यूँ ही, बेकार नहीं होती ।
केवल फतह, फरेब से, हर बार नहीं होती।
खुद पे हो भरोसा और, जज्बा बुलंद हो,
उसको किसी मदद की, दरकार न…
लोग मरते रहे, छटपटाते रहे।
अपने-अपने मसीहा, बुलाते रहे।
वक्त ही ना मिला, उन मसीहाओं को,
और दरिंदे तो, लाशें बिछाते रहे।…
एक दूसरे को हिंदू , मुस्लिम जला रहे हैं।
हम आदमी ही आदमी का, मांस खा रहे हैं।
है कौन बड़ा दोषी, और कौन मसीहा है?
जब मिलक…
चन्द चेहरे जो, तमतमाए हैं।
आइने शाह को, दिखाये हैं। (1)
साजिशें देखना, हवाओं की,
आंधियों में, दिये जलाए हैं। (2)…
हर कीमत पर जो बिकने को, बैठे हैं बाजारों में।
भ्रस्टाचार वो ढूंढ रहे हैं, औरों के किरदारों में।
जिनको हम समझे थ…
हम उनका कहना तो, हर बार मान लेते हैं.
जो झूठे वादों से, हम सबकी जान लेते हैं.
कहा था जनता के, खाते में पैसे आयेंगे,
वो नोट बन्द…
आजकल के मुद्दों पे, बातें मना है।
क्योंकि ये सरकार की, आलोचना है।
मर गये सैनिक, तो जी डी पी घटेगी?,
कृषकों के मरने से…
उनके वादों का कभी, हिसाब नहीं मिलता।
सवाल तो बहुत हैं, पर जबाब नहीं मिलता।
जो भी विपक्ष में हैं, बस वो ही भ्रष्टाचारी,…
यूँ तो मयखाने से, हम दूर बहुत रहते हैं।
तेरे नशे में मगर, चूर बहुत रहते हैं।
हम तो फौलाद को भी, मोम बना सकते हैं,
इश्क की राह म…
वो मेरे कत्ल का, सामान लिए फिरता है।
सिर्फ हिंदू, या मुसलमान किए फिरता है।
जवानियों में, वो ढूँढे हसीन कातिल को ।
अपने …
उनकी नजरों का जब से, इशारा हुआ।
दिल मुहब्बत का तब से, है मारा हुआ।
बस यही एक दौलत, कमाई थी जो,
अब ये दिल बेवफा भी, तुम्हारा हुआ।…
इस आशिकी में हाल जो, दिल का हुआ, हुआ।
मत पूँछिये मुझसे कि, मुहब्बत में क्या हुआ।
ताउम्र चलेगी ये, गमे इश्क की दौलत;
खायें…
लाचार सी , मायूस, नजर देख रही है।
मिलती जिधर मदद है,उधर देख रही है।
एक दूसरे पे थोप के, इल्जाम पे इल्जाम;
हर मुद्दे से
किस काम जवानी है, जो ज़ुल्फों में ना उलझे,
और हुस्न के फंदे में जो, जकड़ा ना गया हो।
पानी से भी कमतर है, वो खून जिस्म का
से…
आँखों में नहीं, दिल में, उतर जाएँ कभी तो
दरवाजे खुले हैं, वो इधर आयें, कभी तो ।।
मुमकिन नहीं है, मंजिले पाना तो क्या हुआ?…
लाशों पे, सियासत की फसल, बो रहा है वो ।
जलते शहर में भी, सकूँ से, सो रहा है वो ॥
किलकारियाँ भरते थे जो, आबाद गली में ,
बस्ती मे…
Very nice 👍👍
Jabardast
Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up
बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष
अति सुंदर
व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!
Amazing article 👌👌
व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....
Excellent analogy of the current state of affairs
#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन
एकदम कटु सत्य लिखा है सर।
अति उत्तम🙏🙏
शानदार एवं सटीक
Niraj
अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।
अति उत्तम रचना।🙏🙏
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