हर कीमत पर जो बिकने को, बैठे हैं बाजारों में।
भ्रस्टाचार वो ढूंढ रहे हैं, औरों के किरदारों में।
जिनको हम समझे थे मांझी, छोड़ दिये मंझधारों में।
आज कबीले के ही कातिल, शामिल हैं सरदारों में।
प्यार पे पहरा, घर-बाहर का, कोर्ट-कचहरी थानों का,
लव-जेहाद से, खाप से देखो, खौफ मचा दिलदारों में।
उलझा देंगे जाति-धरम में, जब तक कुछ भी सोचेंगे,
सारी दुनिया आके फँसी है, धरम-जाति हथियारों में।
दंभ, घोटाले, झूंठ आँकड़े, विज्ञापन में दावों से,
खुद को ख़ुदा समझते ही हैं, रहते जो सरकारों में।
ट्रेन-बाढ़ में, अस्पताल में, रोज ही पब्लिक मार रहे,
मेरे मसीहा छुट्टी ले लो, कम से कम इतवारों में।
हर भाषण में झूठे वादे, रोजी-रोटी के यारों,
दावे हुए खोखले इतने, यकीं नहीं अब नारों में।
न सच कहें, सुने ना सच को, देखें और दिखाएं ना,
चरणवन्दना बहुत हुई अब, खबर छपे अखबारों में।
हे इंसाफ की देवी खोलो, अपनी आँख कि पट्टी तुम,
सिर्फ तराजू क्या कर लेगा, जंग लगी तलवारों में।
सच से होता खौफ़ हमेशा, सत्ता के गलियारों में।
अब के तानाशाहों के हैं, नायक बस हत्यारों में।
नेता-मीडिया-बिजनेसमैन का, ये गठजोड़ सलामत है,
कौन कहेगा अब सच ‘जानी’, सभी झुके दरबारों में।