हम उनसे मुहब्बत का, इजहार ना कर पाए।
दिल में ही रही चाहत, एक बार ना कह पाए।
चाहा तो बहुत दिल का, हम हाल बताएंगे,
कोशिश भी किया लेकिन, हर बार ना कर पाए।
आँखें तो बोलती थी, भाषा वो प्यार वाली,
ना तो न कही लेकिन, इकरार ना कर पाए ।
दिल खोल ना पाए हम, देखा जो ज़माने को,
लड़ने को ज़माने से, तैयार ना कर पाए ।
हम उनके लिए बैठे, पलकों को बिछाए थे,
सबकी तो सुना, मेरा, एतबार ना कर पाए ।
दिल दे तो दिया हमने, एकतरफा मुहब्बत में,
दिल देकर दिल लेने का, ब्यापार ना कर पाए ।
दिल की ना सुनी `जानी', माना है ज़माने की,
वो भी तो ज़माने को, इनकार ना कर पाए ।
हम उनसे मुहब्बत का...
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आपकी राय
Very nice 👍👍
Jabardast
Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up
बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष
अति सुंदर
व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!
Amazing article 👌👌
व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....
Excellent analogy of the current state of affairs
#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन
एकदम कटु सत्य लिखा है सर।
अति उत्तम🙏🙏
शानदार एवं सटीक
Niraj
अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।
अति उत्तम रचना।🙏🙏
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