शराफत देख बन्दों की, हुआ करतार सदमें में ।
वफ़ा का हश्र वो देखा, कि है एतबार सदमें में ।
हैं जीते खाप के ही खौफ़ में, कानून और प्रेमी,
कहीं सदमें में है दिलवर, कहीं दिलदार सदमे में ।
डकैती, खून, चोरी, रेप, साजिश, से भरे देखो,
कहीं टीवी है सदमें में, कहीं अख़बार सदमें में ।
बदलता वक्त का पहिया, ना होता एक सा हरदम,
कभी जनता है सदमें में, कभी सरकार सदमें में ।
मुहब्बत और वफ़ा, दौलत से, आंकी जा रही है जब,
लगी है प्यार की बोली, तो अब है, प्यार सदमें में ।
रही बिक कोंख माँ की, और बच्चे भी यहां बिकते,
बेंचकर रिश्ते और जज्बात भी, बाजार सदमें में।
जिगर के टुकड़े पे जिसने, किया कुर्बान खुशियों को,
उसी ने जब से छोड़ा है, तो माँ बीमार सदमें में।।
गुजारी जिंदगी जिसने, आस में सिर्फ कुर्सी की,
नहीं कुर्सी मिली तो, चल पड़े हरिद्वार सदमें में ।
तरक्की देख चमचों, बेईमानों और भ्रष्टों की,
दबाकर दांत में उंगली, खड़ा खुद्दार सदमें में ।।
वकीलों, मुंसिफ़ों, छोड़ो ये ड्रामे, और मत खेलो,
अभी तक ना हुआ कोई भी, गुनहगार सदमें में ।।
कहीं नक्सल, कहीं आतंक, या माओ का डर फैला,
कहीं रविवार सदमें में, कहीं बुधवार सदमें में ।
न है सरकार को चिंता, न जनता को फ़िकर कोई,
जो सोचे देश की हालत, वही हर बार सदमें में ।
न बदलेंगे कभी हम-तुम, मगर ये वक्त बदलेगा,
तो छोड़ो देश की चिंता, न हो बेकार सदमें में ।।
चलो मयखाने, सुलझातें हैं 'जानी', देश के मसले,
बुला लो शाकी को, और पैग लो, दो-चार सदमें में।