किस काम जवानी है, जो ज़ुल्फों में ना उलझे,
और हुस्न के फंदे में जो, जकड़ा ना गया हो।
पानी से भी कमतर है, वो खून जिस्म का
सेवा में देश की अगर, कतरा ना गया हो।
जज़्बात, वफा, प्यार में, रोयेंगे कहाँ तक
रोने के लिए अब कोई, दुखड़ा तो नया हो।
सोने को खरा कहने का, मतलब नहीं तब तक
जब तक कि वो पत्थर पे, रगड़ा ना गया हो
हम किसको कहें ‘जानी’, बेईमान या शरीफ
वो है ईमानदार, जो, पकड़ा ना गया हो