जहाँ में देश का अपने भी, रोशन नाम हो जाए
अगर एक दिन सियासत का, वतन के नाम हो जाए
गरीबों की सियासत कर, वतन को बेंचने वाले
अगर कुछ ना करें तो भी, बहुत से काम हो जाए
उन्हें यूँ सब्सिडी, सेन्सेक्स से, क्या फर्क पड़ता है
जिन्हें एक रोटी की मेहनत, सुबह से शाम हो जाए।
लिए हाथों में सब इमाँ, खड़े आतुर हैं बिकने को,
यही बस आरजू सबकी, कि अच्छा दाम हो जाए।
गुनहगारों को भी, कानून का डर, तब सताएगा
अगर मुजरिम का, मुजरिम सा, कभी अंजाम हो जाए
मजा सावन की बारिश का, तो बस गावों में आता है,
शहर में हो जरा बारिश, की लंबा जाम हो जाए
कौन कहता है कि, चर्चे हमारे, हो नहीं सकते
बहुत आसान है ‘जानी’, अगर बदनाम हो जाएँ