यूँ तो मयखाने से, हम दूर बहुत रहते हैं।
तेरे नशे में मगर, चूर बहुत रहते हैं।
हम तो फौलाद को भी, मोम बना सकते हैं,
इश्क की राह में, मजबूर बहुत रहते हैं।
उनपे जब आयी जवानी, वो खुदा भूल गए,
दौलते-हुस्न में, मगरूर बहुत रहते हैं।
हम हकीकत में भी जिंदा हैं, जमाने भर में,
हम फसानों में भी, मशहूर बहुत रहते हैं।
आप कहते हैं लगातार, गरीबी कम है,
देखो फुटपाथ पे, मजदूर बहुत रहते हैं।
कायदे-इश्क़ के माने, वो आशिक कैसा?
यूं राहे-इश्क में, दस्तूर बहुत रहते हैं।
तुम्हारे साथ, ख़िज़ाँ भी, बहार लगती है,
वरना मंजर सभी, बेनूर बहुत रहते हैं।
जहान जीतना, फितरत में है भले ‘जानी’,
शिकस्ते-दिल भी, मंजूर बहुत रहते हैं।