लावा दिल में फूट रहा है,
बांध सब्र का टूट रहा है
देश को नेता लूट रहा है
साथ सत्य का छूट रहा है
पर आँख बंद किए रहते है।
... फिर भी हम चुप रहते हैं
गर्मी, लू, बरसात से मरते
रेल और आतंकवाद से मरते
कर्ज, गरीबी, भूंख से मरते
अन्न गोदामों मे ही सड़ते
अफसर लूट के जेब को भरते
भूंख, गरीबी सहते हैं
.... फिर भी हम चुप रहते हैं।
घोटालो पर घोटाले हो,
जाँच से ही, पर्दा डाले हों
सत्ता मद में मतवाले हों
घोड़े घास के रखवाले हो,
सबकुछ सभी समझते हैं
..... फिर भी हम चुप रहते हैं
जाति पांति में फंसे हुये
धर्म के नाम पर चुसे हुये
राजनीति से लूटे हुये
महंगाई में पिसे हुये,
सबकुछ तो हम सहते हैं।
...... फिर भी हम चुप रहते हैं...