भेदभाव, अन्याय, उपेक्षा, कब तक यूं ही सहना है?
हे भारत के बहुजन बोलो, कब तक यूं चुप रहना है?
बहुजन को दास बनाने हित, ब्राह्मण ने वेद-पुराण रचा।
खुद को मजबूत बनाने को, मंदिर, देवता, भगवान रचा।
बस कर्मकाण्ड में फंसे हुये, केवल ब्राह्मण को रोना है।
स्कूली बस्तों के बदले, कब तक काँवड़ को ढोना है?
दौलत जो खून-पसीने की, कबतक मंदिर में चढ़ना है?
हे भारत के बहुजन बोलो, कब तक यूं चुप रहना है?
भेज रहे जब यान, विदेशी, ग्रहों का सीना चीर।
हम श्राद्धों में भेज रहे, ब्राहमणों से पूड़ी खीर।
ब्राह्मण देवी देवताओं के, हाथ में क्यों हथियार?
आखिर किसको मारेंगे ये?, पूंछे बाबा पेरियार।
शूद्र बनाए जो हमको, देवता-पुराण सब जलना है।
हे भारत के बहुजन बोलो, कब तक यूं चुप रहना है?
विद्या-हीन बने अज्ञानी, नैतिक बने ना ज्ञान बिना,
नीति बिना उत्थान नहीं, शिक्षा बिना समस्त छिना।
चमड़े सिलना मोची का ज्यों, धर्म नहीं है, धन्धा है।
पूजा-पाठ-हवन करवाना, वैसे ब्राह्मण का धन्धा है।
गीता-मानस-स्मृति छोड़, फूले-अंबेदकर पढ़ना है।
हे भारत के बहुजन बोलो, कब तक यूं चुप रहना है?
ब्रह्मा, विष्णु, या महेश में, रखना है विश्वास नहीं।
राम-कृष्ण अवतारों की, पूजा आस्था या आस नहीं।
गौरी-गणपति, देवी-देवता में, न आस्था हो न पूजा।
विष्णु के अवतार बुद्ध थे, ये भी प्रचार केवल झूठा।
ना श्राद्ध चढ़े अब पितरों को, ना पिंडदान ही करना है।
हे भारत के बहुजन बोलो, कब तक यूं चुप रहना है?
चोरी, लंपटता, झूठ, छोड़ना, मानवता का साधक है।
हिन्दू धर्म त्यागना है जो, समता-विकास में बाधक है।
दया-प्यार जीवों पे करके, समता-समानता लाना है।
मादकता से रहें दूर, और बुद्ध शरण में जाना है।
बाबा साहब के बाईस, संकल्पों पर ही चलना है।
हे भारत के बहुजन बोलो, कब तक यूं चुप रहना है?
सदियों से चलती आई है, या धर्म शास्त्र में लिखा हुआ।
इसलिए मानना नहीं सिर्फ, की आदरणीय ने कहा हुआ।
बातें केवल वो ही मानो, जो तर्क बुद्धि पर खरा लगे।
अंधभक्त मत बनो किसी के, भला लगे या बुरा लगे।
राह दिखाई बुद्ध ने जो, उन दस परिमितों पे चलना है।
हे भारत के बहुजन बोलो, कब तक यूं चुप रहना है?
तोता रटंत मनुवाद नहीं, असली मनुवाद समझना है।
बहुजन के भीतर भेदभाव, उससे भी पार उतरना है।
हिन्दू बनने के चक्कर में, ब्राहमण का सेवादार बना।
‘जानी’ये ब्राहमण धर्म ही तो, शोषण का हथियार बना।
शिक्षित हो, संगठित बने, संघर्ष बहुत ही करना है।
हे भारत के बहुजन बोलो, कब तक यूं चुप रहना है?