वतन हिन्द था बहुत सुहावन। बहत जहा गंगा जल पावन ॥
जाति धर्म की चर्चा नाहीं। ईर्ष्या, द्वेष ना भारत माहीं ॥
मिलि जुलि रहई इंहा सब लोगा। करई सदा कारज सम भोगा॥
कछुक दशक भई हिन्द आजादी।खतम मनुजता भई बुनियादी ॥
दुरुपयोग भइली आजादी। मिट गये भगत, बॉस अरू गांधी ॥
लोग रखाए देश को ऐसा। घास रखावत घोडा जैसा ॥
जब घर अग्नि चिराग लगाए। तो फिर घर को कौन बचाए ॥
ऐसे हुआ देश के संगा । नेता लोग बढ़ाए दंगा ॥
रहें देश में, देश को खाये। दीमक ज्यों लकड़ी को चबाए ॥
आजादी के मिलन से, मिल गयी इतनी छूट ।
जातिवाद, हिंसा, बढ़ी, और बढ़ गयी फुट ॥
नेता लोग लड़ावन लागे। वोट बैंक बनावन लागे ॥
जेहि विधि बनई देश के राजा। नेता करई तुरत सोई काजा ॥
धर्म –जाति सब एक समाना । लेकिन बांटी देई भगवाना ॥
खुद तो देश एक में जोरे । राम रहीम मेँ नाता तोरें ॥
बहुसंख्यक जो धर्म है देशा । तिन्हई पूजि ये बनई नरेशा॥
मातृ - गर्भ में जैसे बेटा । भारत देश में वैसे नेता॥
माँ शोषण से करता पोषण । देश सोख वो करते पोषण ॥
हिन्दू संख्या ज्यादा देखी । इनके हिय तब सोच विसेखी॥
हिन्दू हित कछु ढोंग दिखावऊ। काहे न मस्जिद ही गिरवावऊ॥
स्वार्थ भरी तलवार से, कटा खुदा का शीश।
सारे जग के बीच में, झुका देश का शीश ॥
रहत सदा हम जिसकी दुनिया। उससे बड़ा कौन हे गुनिया ॥
बन्द किए भगवान को ऐसे । तोता हो पिंजरे में जैसे ॥
राम बन्द मंदिर के अन्दर । भइल तलैया में ही समुंदर ॥
धर्म अस्त्र जब प्रथमू डाले । दूजे जन ब्रह्मास्त्र निकाले ॥
धर्म अस्त्र से अच्छे लक्षण । नाम दिये उसको आरक्षण ॥
वर्ण अस्त्र भी रंग दिखाया । दूजे को शासन दिलवाया ॥
मल्लयुद्ध फिर हुआ अरम्भा । भइल देश में ज़ोर का दंगा ॥
वाक- युद्ध की शुरू लड़ाई । एक दूजे की किए बुराई ॥
बोला प्रथम भूप सह रोषा । दूजे वाले का सब दोषा ॥
इसने जातिवाद फैलाया । जनता संग दो भाव दिखाया ॥
दिया छूट बस एक को, दूजा हुआ भिंखार ।
देश तोड़ने का है, इसका बुरा विचार ॥
दूजे भी तो थे अति ज्ञानी । सुनत वचन बोले मृदु बानी ॥
“माना मेंने जाति बढ़ाया । तुमने पहले धर्म बढ़ाया ॥
गर मैने दो भाव दिखाया । तुमने ही कब एक दिखाया ॥
हिन्दू धर्म बढ़ाया तूने । मुस्लिम धर्म दबाया तूने ॥
तुमने सिर्फ बढ़ाया हिन्दू । तुमसे ही कुछ सीखा बंधु ॥
तुमने भी तो एक उठाया । मैने भी वो ही अपनाया ॥
संविधान की बात जहाँ हो। तुमसे पहले प्रश्न वहाँ हो ॥
सविधान तूने क्यों छोड़ा। मस्जिद को तुमने क्यों तोड़ा ॥
ये तो समय बात में काटें ।अपने हित भाई को बांटे ॥
संभल नहीं गर हम जायेंगे। तो फिर आगे पछतायेंगे ॥
इसी बीच में तीसरे, नेता उभरे एक ।
मुस्लिम धर्म बढ़ाने का, किया फैसला नेक ॥
बढ़ा वोट जब तीजे जन का । तब दोनों का माथा ठनका ॥
सोचे दोनों फिर से थोड़ा । दौड़ाए दिमाग का घोड़ा ॥
एसे गर हम लड़ जाएंगे । तीजे कुर्सी पा जाएंगे ॥
फिर दोनों की बंद लड़ाई । बन गए दोनों भाई –भाई ॥
मिलकर दोनों कुर्सी पाए । तीजे जन को दूर भगाए ॥
स्वारथ कुर्सी का हे इनको । खद्दर पहन के लूटे दिन को ॥
देश भलाई तनिक न जाँचे । खद्दर पहन के नंगा नाचे ॥
अपने हित भगवान को बांटे। स्वयं बढ़ाकर खाईं, पाटें ॥
कुर्सी हित कुछ भी कर जायें । दुश्मन और दोस्त बन जायें ॥
संभल नहीं गर हम जाएँगे । तो फिर आगे पछतायेंगे ॥
नेता-गण सब शूल हैं, तो हैं लोग सरोज ।
सोच-समझ जनता बढे, विनती करे ‘मनोज’॥