देश की चिंता में, घुल रहे हैं हम!!
हर तरफ बह रही गंगोत्री भ्रष्टाचार की है
बड़े ही शान से बहती गंगा में, हाथ धुल रहे हैं हम।
देश की चिंता में, घुल रहे हैं हम!!
कई सदियों की गुलामी भुला चुके हैं अब,
परंपरा देशी दक़ियानूसी है सोच करके ही
बनके माडर्न धीरे धीरे से खुल रहे हैं हम।
देश की चिंता में, घुल रहे हैं हम!!
बिना दबाव कभी,काम तो होता ही नहीं
हिसाब मांगती अदालतें जब जब
दिखाते जनता को नेता तब है, कि
कितनी मेहनत से हिल डुल रहे हैं हम
देश की चिंता में, घुल रहे हैं हम!!
ट्रेन लड़ती है भूल जाते हैं, बम फूटे तो भूल जाते है
नेता लूटे तो भूल जाते हैं, देश कि खातिर
हरेक मुद्दे पे ‘जानी’, ढुलमुल रहे हैं हम।
देश की चिंता में, घुल रहे हैं हम!!