गरीबी से परेशान,
था एक किसान।
न पैसे, न बेंचने को,
था कोई सामान।
दो गायें थी उसकी,
कुल जमा पूंजी।
इनके सिवा संपत्ति,
थी ना कोई दूजी।
भूंख से बेहाल,
होकर लाचार।
गायों को बेंचने,
ले गया बाजार।
ग्राहक ने आकर,
बड़े अरमान से।
गायों का दाम,
पूंछा किसान से।
किसान कुछ सोचकर,
गम्भीर होकर बोला।
गायों का दाम,
कुछ इस तरह खोला।
पहली जो गाय है,
दूध खूब देती है।
कूदती ना फांदती,
गाय बहुत सीधी है।
इसका दूध दुहने में,
नहीं कोई झाम है।
एसी प्यारी गाय का,
एक हजार दाम है।
दूसरी जो गाय है,
उसकी अलग बात है।
दूध दुहने जाइए,
तो मारती ये लात है।
दूध नहीं देती है,
सुबह हो या शाम।
एसी गाय का है,
बस दो हजार दाम।
चकित हो ग्राहक बोला,
ये कैसा अन्याय है?
दूध नहीं देती जो,
वही महंगी गाय है!
थन को भी छूने पर,
मारती जो लात है।
उसका दाम ज्यादा है,
ये भी कोई बात है?
किसान बोला-आपको,
इतनी भी नहीं तमीज है?
आखिर इस दुनिया में,
करेक्टर भी कोई चीज है!
दूध जो देती है,
उसका तो मोल है।
लेकिन इस दुनिया में,
करेक्टर अनमोल है।
आजकल दुनिया में,
करेक्टर किसके पास है?
इसीलिए तो गाय ये,
औरों से खास है।
वरना आप हमको,
इतना तो बताइए।
किसमें करेक्टर बचा?
सामने तो लाइए।
नेता, मंत्री, अफसरों की,
रोज खुलती पोल है।
आधुनिक बाबाओं का,
करेक्टर ही गोल है।
डाक्टरी-इंजीनियरी में,
करेक्टर का रोल है?
टेण्डर में, टेस्ट में,
रोज होता झोल है।
बाबाओं के आश्रमों में,
होता वो काम है।
करेक्टर को ढूँढ़िए तो,
मिलते आशाराम है।
ख़बरों के नाम पर,
होती दलाली है।
बिकी हुई मीडिया,
करेक्टर से खाली है।
घोटाले दर घोटाले,
कर, नेता बदनाम हैं।
बड़ी-बड़ी कोर्टो पर,
भी लगा इल्जाम है।
दुनिया में करेक्टर का,
जब इतना अभाव है।
करेक्टर वाली गाय का,
इसलिए ही भाव है।
दूध वाली गाय का,
करेक्टर नीलाम है।
करेक्टर वाली गाय का,
इसी से, ज्यादा दाम है।